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कविता

खिलखिलाहट

रेखा चमोली


हँस रही है एक बच्ची
जाने किस बात पर
मानो पहाड़ी के पीछे
फसल पकने जैसी उजास
धीरे धीरे बढ रही हो
चमकीली किरणें दूर आसमान तक फैलकर
सूर्योदय का ऐलान कर रही हों
मानो असीम नील श्यामपट्ट पर
बादलों ने मनचाहे रंग भर
अपनी हथेलियाँ बच्ची के गालों पर मल दी हों।

 


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